” शांति के लिए हमारे पास समय नहीं है “

शांति के लिए एक घण्टा भी हमारे पास नहीं है   ? तो फिर फ़िल्में कौन देख रहा है  ? सिनेमाघरों के बाहर जो लोग लाइन में लगे हैं, उन लाइनों में कौन लोग खड़े हैं  ! हम लोगों में से ही कुछ लोग लाइन में खड़े हुए हैं  ! ताश कौन खेल रहा है  ? न्यूज़ पेपर कौन  लोग पढ़ रहे हैं  ? रेडियो कौन सुन रहा है  ? टी. वी. कौन देख रहा है  ? होटलों में कौन गपशप कर रहा है  ? क्लब क्यों और किसने बनाये हैं  ? कौन लोग लायन्स क्लब में  बैठे हैं  ? कौन रोटरी क्लब में जाकर फिजूल की बातें कर रहा है  ? यह सब रंगारंग कार्यक्रम किसके लिए चल रहा है  ? और जब भी कोई कुछ पूंछता है तो हम कहते हैं कि हमारे पास टाइम नहीं है  !

अशांति  पैदा करने के लिए हमारे पास 24 घण्टे हैं   ! शांति पैदा करने के लिए हमारे पास एक घण्टा नहीं है  ! परमात्मा की प्रार्थना के लिए हमारे पास समय नहीं है  ! बुजुर्गों की सेवा के लिए हमारे पास समय नहीं है  ! असहायों की मदद के लिए, बैर भाव भुलाकर सबके साथ हँसी खुशी जीवन जीने के लिए  हमारे पास समय नहीं है  ! अपने अहंकार को पहचान कर  उसको त्यागने का हमारे पास समय नहीं है  !  संतों के वचन  , गुरु की आज्ञा पालन करने का हमारे पास समय नहीं है  !  बच्चों के साथ बैठकर उनमें अच्छे संस्कार देने का हमारे पास समय नहीं  है  ?  अब यह विचार करना होगा कि हमारे पास समय कहाँ से  आयेगा  ?

 

———- राम कुमार दीक्षित  , पत्रकार , पुणे  !