★रोगों की माँ है – शरद ऋतु
★खाने-पीने योग्य विशेष सावधानियाँ :-
★खट्टा और तीखा नहीं खाना है – पित्त होगी।
★( तड़के में) जीरे का बघार करें, राई का बघार करें ।
★हींग कम, नमक कम, टमाटर कम अथवा नहीं।
★ कढ़ी-छाछ नहीं लें। ये सब पित्तवर्धक है।
★कसैला, मधुर और कड़वा लें।
★पानी भरपूर पीएं। सुबह पानी प्रयोग करें। मिट्टी के मटके में या चांदी के बर्तन में रखा पानी पीएं। लगभग छः अंजली अथवा 600 मि.ली. पानी ।
★सुबह आंवले का रस लें। शाम को त्रिफला ।
★सुबह खाने में मीठा दलिया, गेहूं, राब दूध आदि
★शाम खाने में – लौकी, तोरई, करेला आदि ।
★पीला पेठा, पित्त शामक, सब्जी खाएं।
10-15 दिन सफेद पेठा रस पीएं।
★हफ्ते में एक दिन खीर खाएं।
★तली हुई चीजें न खाएं।
★रात के भोजन में तीखा और खटास न हो। मीठा ले सकते हैं। मिर्ची, खटाई पित्तवर्धक हैं।
★पकौड़े नहीं खाना।
★हफ्ते में दो दिन दलिया बनाओ, खीर आदि ।
★50 ग्राम इस सफेद पेठे का रस सुबह लें।
★रात की चाँदनी में बैठना अच्छा है आजकल।
★शरद पूनम तक इसका प्रभाव रहेगा। ★करेला पित्तशामक होता है। चावल पित्तशामक, मिश्री भी।
★सूरन भी गर्म होता है। पकौड़ा नहीं खाना व्रत में भी।
——— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे !