यूनानी विचारक डायोजनीज अपना ज्यादातर समय घूमने–फिरने में बिताया करते थे ! वे सुकरात के शिष्य थे और उन्हीं की तरह लोगोँ की समस्यायों का समाधान करने की भरपूर कोशिश भी किया करते थे ! धीरे धीरे डायोजनीज की ख्याति भी दूर दूर तक फैलती जा रही थी ! वे अपने व्यक्तित्व में सुधार के लिए लगातार प्रयासरत रहते थे ! कभी फूलों के पास जाकर उनसे बातें करते, तो कभी यूँ ही समुद्र के किनारे शांत मन से आँखें बंद कर ध्यान में लग जाते और अपने मन को नियंत्रित करने का प्रयास करते थे !
एक दिन वह एक पत्थर की मूर्ति के पास गए और उससे बातें करते रहे ! एक युवक वहाँ से गुज़र रहा था ! डायोजनीज जैसी हस्ती को एक पत्थर की मूर्ति से बातें करते देख वह हैरान रह गया ! वह उनके पास जाकर बोला, महानुभाव , आपसे यह उम्मीद नहीं थी ! हम लोग तो आपके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेने का प्रयास करते हैं और आप ऐसी हरक़त कर रहे हैं ! एक मामूली पत्थर से बातें करने का आखिर क्या मतलब है ? भला एक पत्थर क्या जवाब देगा ? किसी पत्थर से आप शराफत से बातें करो या बदतमीज़ी से, वह तो शांत ही रहेगा !
युवक की बात सुनकर डायोजनीज मुस्कराकर बोले , बिल्कुल सही कहा आपने कि भला एक पत्थर क्या जवाब देगा ? वह तो शांत ही रहेगा , तो मैं भी इस पत्थर से यही सीखने का प्रयास कर रहा हूँ कि यदि कोई मुझे अपशब्द कहे या अनुचित भाषा में बात करे , तो मुझे इस पत्थर की तरह ही शांत रहना है ! हर हाल में शांत बने रहना है ! एक पत्थर से बेहतर यह सीख और कौन दे सकता है ? कोई और हो तो मुझे भी बताओ ! मैं उसके पास जाऊंगा ! युवक डायोजनीज की बात सुनकर दंग रह गया और मन ही मन उनकी साधना के प्रति नतमस्तक हो गया ! इससे हमेँ यही सीख मिलती है कि हर परिस्थिति में हमें भी धैर्य बनाये रखना चाहिए !
राम कुमार दीक्षित, पत्रकार , पुणे !