” अगर हो सकते हमको ज्ञात “

अगर  हो  सकते  हमको  ज्ञात

नियति  के, प्रिये,   रहस्य  अपार  !

जान  सकते  हम  विधि  का  भेद  ,

विश्व  में  क्यों  चिर  हाहाकार  !

चूर्ण  कर  जग  का  यह  मृद्  पात्र

उड़ा  देते  अनंत  में  धूल  ,

और  फिर  हम  दोनों  मिल  ,  प्राण  ,

उसे  गढ़ते  उर  के  अनुकुल  !

————- सुमित्रानंदन  पंत

(  संकलित  )

राम कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !