स्वप्न–सज्जित प्यार मेरा,
कल्पना का तार मेरा ,
एक क्षण में मधुर निष्ठुर तुम गए झकझोर !
तुम गए चितचोर !
हाय ! जाना ही तुम्हें था ,
यों रुलाना ही मुझे था ,
तुम गए प्रिय, पर गए क्यों नहीं हृदय मरोड़ !
तुम गए चितचोर !
लुट गया सर्वस्व मेरा ,
नयन में इतना अंधेरा ,
घोर निशि में भी चमकती है नयन की कोर !
तुम गए चितचोर !
———— गोपालदास ” नीरज ”
( संकलित )
राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !