” मन पँछी…”

मन पंछी

हम नील गगन के उड़ते परिंदे,
बिना पंख के उड़ते जाये ।
मन में हौसलों के पंख लगा,
पथ पर अपने बढ़ते जाये। ।
कोई बहेलिया राह न रोके,
बिछा कर अपना जाल ।
कोई बहरूपिया हमें न लूटे,
दिखा कर नकली माल ।।
मांझी सम हौसला हमारा,
पर्वत चीर निकल जाये।
हम नील गगन…….
हमें अबोध न समझे कोई,
हम हैं ध्रुव प्रह्लाद,
नादान हमें न समझे कोई,
हमसे है भारत आबाद।।
है एकता हमारी ताकत,
जो हौसले हमारे बढ़ाए ।
हम नील गगन के…..
अबोधअज्ञानी सही हम,
पर हैं भारत के लाल,
अवसर यदि मिल जाये,
तो सीमा पर करे कमाल | | दुश्मन की धरती पर हम,
तिरंगा लहराने जायें
हम नील गगन……

कृष्णा कानपुरी

अग्रसारित—– राम नरेश त्रिवेदी