कवि नीरज की खोज
कहाँ हो गोपाल ?
तुम्हें मैं ढूढ़ता हूँ
कॉलेज प्राङ्गण में,
कभी अँधेरे कमरों में।
खाली कुर्सियों को,
ताकता हूँ, बस ताकता हूँ।
कहाँ हो गोपाल ?
तुम्हें मैं ढूढ़ता हूँ
कभी शोध-कक्ष में,
कभी पुस्तकालय में।
जीने की सीढ़ियों को,
ताकता हूँ- बस ताकता हूँ
कहाँ हो गोपाल ?
तुम्हें मैं ढूढ़ता हूँ ।
कॉलेज सभागार में,
परिसर में मूक खड़े वृक्षों से,
पूछता हूँ – बस पूछता हूँ।
कहाँ हो गोपाल ?
तुम्हें मैं ढूढ़ता हूँ ।।
मुख्य द्वार के बाहर,
सजी दुकानों पर,
खड़े छात्रों में तुम्हें,
ढूढ़ता हूँ बस ढूढ़ता हूँ।
कहाँ हो गोपाल ?
तुम्हें मैं ढूढ़ता हूँ ।।
कृष्णा कानपुरी
आग्रसारित —– राम नरेश त्रिवेदी