” चोरी की सज़ा “

जब ज़ेन मास्टर बनकेइ ने ध्यान करना सिखाने का कैम्प लगाया तो पूरे जापान से कई बच्चे उनसे ध्यान सीखने आये  ! कैम्प के दौरान ही एक दिन किसी छात्र को चोरी करते हुए पकड़ लिया गया  ! ज़ेन मास्टर को ये बात बताई गई  ! बाकी छात्रों ने अनुरोध किया कि चोरी की सज़ा के रूप में इस छात्र को कैम्प से निकाल दिया जाए  ! लेकिन ज़ेन मास्टर ने इस पर ध्यान नहीं दिया और उसे बच्चों के साथ पढ़ने दिया  !

कुछ दिनों बाद फिर ऐसा हुआ  ! वही छात्र दुबारा चोरी करते पकड़ा गया  ! एक बार फिर उसे ज़ेन मास्टर के सामने ले जाया गया, पर सभी की उम्मीदों के विरुद्ध इस बार भी उन्होंने छात्र को कोई सज़ा नहीं सुनाई  ! इस वजह से अन्य बच्चे क्रोधित हो उठे और सभी ने मिलकर ज़ेन मास्टर को पत्र लिखा कि यदि उस छात्र को नहीं निकाला जायेगा तो सारे बच्चे कैंप छोड़कर चले जायेंगे  !

ज़ेन मास्टर ने पत्र पढ़ा और तुरंत ही सारे बच्चों को इकट्ठा होने के लिए कहा, :  ” आप सभी बुद्धिमान हैं  ” ! ज़ेन मास्टर ने बोलना शुरू किया,  ” आप जानते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है  ! यदि आप लोग कहीं और पढ़ने जाना चाहते हैं तो जा सकते हैं , लेकिन ये बेचारा यह नहीं जानता कि क्या सही है और क्या गलत है  ! यदि मैं इसे नहीं पढ़ाऊँगा तो और कौन पढायेगा  ?  यदि आप सभी चले भी जाते हैं तो मैं इसको पढ़ाऊँगा   ! यह सुनकर चोरी करने वाला छात्र फूट फूट कर रोने लगा और उसने कहा कि अब मैं कभी भी चोरी नहीं करूँगा  ! अब उसके अंदर से चोरी करने की इच्छा हमेशा के लिए जा चुकी थी   !  इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि  यदि हमसे कोई गलती हो भी जाती है तो हमें उस गलती को कभी भी नहीं दुहराना चाहिए  और गलती के लिए प्रायश्चित करके  सत्य मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए  ! गलती होना स्वाभविक है लेकिन कभी भी गलती की पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए   !

 

राम कुमार दीक्षित,  पत्रकार   !