तो अपने गोद में बिठाती है !
झपकी जब आने लगती है ,
तो प्यार से हमें सुलाती है !
नदियों और पहाड़ों को भी ,
यह तो खूब सजाती है !
अपनी उर्वरक मिट्टी में भी
नित नये फूल खिलाती है !
बेचैनी जब हमें सताती ,
ठंडी हवा संग सहलाती है !
लाड प्यार माँ जैसा करती ,
धरती माँ कहलाती है !
राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !