एक गुरु के दो शिष्य थे ! एक पढाई में बहुत तेज़ और विद्वान था और दूसरा फिसड्डी ! पहले शिष्य की हर जगह प्रशंसा और समान होता था जबकि दूसरे शिष्य की लोग उपेक्षा करते थे ! एक दिन क्रोध में दूसरा शिष्य गुरु जी के पास जाकर बोला, ” गुरु जी मैं उससे पहले से आपके पास विद्या अध्ययन कर रहा हूँ, फिर भी आपने मुझसे ज्यादा उसको शिक्षा दी !
गुरु जी थोड़ी देर मौन रहने के बाद बोले, ” पहले तुम एक कहानी सुनो ! एक यात्री कहीं जा रहा था ! रास्ते में उसको प्यास लगी ! थोड़ी देर पर उसे एक कुआँ मिला ! कुंए पर बाल्टी तो थी लेकिन रस्सी नहीं थी , इसलिए वह आगे बढ़ गया ! थोड़ी देर बाद एक दूसरा यात्री उस कुंए के पास आया ! कुंए के पास रस्सी न देखकर उसने इधर उधर देखा ! पास में बड़ी बड़ी घास उगी हुई थी! उसने घास उखाड़ कर रस्सी बटना शुरू कर दिया !
थोड़ी देर में एक लंबी रस्सी बनकर तैयार हो गई ! जिसकी सहायता से उसने कुंए से पानी निकाला और अपनी प्यास बुझा ली ! गुरु जी ने उस शिष्य से पूंछा, ” अब तुम मुझे यह बताओ कि प्यास किस यात्री को ज्यादा लगी थी ? शिष्य ने तुरंत उत्तर दिया, दूसरे यात्री को ! गुरु जी फिर बोले, ” प्यास दूसरे यात्री को ज्यादा लगी थी ! यह हम इसलिए कह रहे हैं क्यों कि उसने प्यास बुझाने के लिए परिश्रम किया ! इसी प्रकार तुम्हारे सहपाठी में ज्ञान की प्यास है, जिसे बुझाने के लिए वह कठिन परिश्रम करता है, जबकि तुम ऐसा नहीं करते हो ” ! शिष्य को अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था ! वह भी कठिन परिश्र – में जुट गया ! इस प्रेरक कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि हमें भी अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए तभी हम सफलता की ऊँचाई पर पहुँच पायेंगे !
राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !