एक समय की बात है, रामकृष्ण परमहंस तोतापुरी नामक एक संत के साथ ईश्वर व अध्यात्म पर चर्चा कर रहे थे ! शाम हो चली थी और ठंड का मौसम होने के कारण वे एक जलती हुई धुनी के समीप बैठे हुए थे !
बगीचे का माली भी वहाँ काम कर रहा था और उसे भी आग जलाने की जरूरत महसूस हुई ! वह फ़ौरन उठा और तोतापुरी जी ने जो धुनी जलाई थी, उसमें से लकड़ी का एक जलता हुआ टुकड़ा उठा लिया ! धुनी छूने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ? तोतापुरी जी चीखने लगे, “पता है तुम्हें ये कितनी पवित्र है ” ! और ऐसा कहते हुए वे माली की तरफ बढ़े और उसको दो चार थप्पड़ जड़ दिये !
रामकृष्ण परमहंस यह सब देखकर मुस्कराने लगे ! उनकी मुस्कराहट ने तोतापुरी जी को और खिन्न कर दिया !
तोतपुरी जी बोले, ” आप हंस रहे हैं— यह आदमी कभी पूजा पाठ नहीं करता है ! भगवान का भजन नहीं गाता है, फिर भी इसने मेरे द्वारा जलाई गई पवित्र धुनी को स्पर्श करने की चेष्टा की ! अपने गंदे हाथों से उसे छुआ– इसलिए मैंने इसे ये दंड दिया !
रामकृष्ण परमहंस शांतिपूर्वक उनकी बात सुनते रहे और फिर बोले, ” मुझे तो पता ही नहीं था कि कोई चीज छूने मात्र से अपवित्र हो जाती है ! आप ही तो कुछ क्षण पहले हमें समझा रहे थे कि सारा संसार ब्रम्ह के प्रकाश से प्रतिबिंबित है ! इसके अलावा और कुछ भी नहीं है और अभी आप माली के धुनी स्पर्श कर देने मात्र से अपना सारा ज्ञान भूल गए और उसे मारने तक लगे ! भला मुझे इस बात पर हंसी नहीं आयेगी तो और क्या होगा ?
परमहंस गंभीरता से बोले, ” इसमें आपका कोई दोष नहीं है ! आप जिससे हारे हैं, वो कोई मामूली शत्रु नहीं है, वो आपके अंदर का अहंकार है जिसे जीत पाना सरल नहीं है ! तोतापुरी जी अब अपनी गलती समझ चुके थे ! उन्होंने सौगंध खाई कि वह अब अपने अहंकार को त्याग देंगे और कभी भी छुआछूत और ऊँच नीच का भेदभाव नहीं करेंगे !
- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !