” छाँव भी जरूरी है “

छाँव  भी  जरूरी  है जीते  जी  सीधा  साधे  चलना  ठीक  नहीं ऊबड़  खाबड़  पड़ाव  भी  जरूरी  है तैरते  तैरते  बाजू  पूँछेगे एक  पल  के  लिए …

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” मैं जिसे ओढ़ता– बिछाता हूँ “

मैं  जिसे  ओढ़ता– बिछाता  हूँ  , वो  गज़ल  आपको  सुनाता हूँ  ! एक जंगल  है  तेरी  आँखों  में  , मैं  जहाँ  राह  भूल  जाता   हूँ …

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