” बिना सफर, बिना मंज़िल “

बिना सफर , बिना मंज़िलों का ,

एक रास्ता होना चाहता हूँ !

कहीं दूर किसी जंगल में ,

ठहरा दरिया होना चाहता हूँ !

एक ज़िंदगी होना चाहता हूँ ,

बिना ख्वाहिशों और रिवाज़ों की !

दूर आसमान से गिरते ,

झरने में कहीं खोना चाहता हूँ !

मैं आज ” मैं ” होना चाहता हूँ ,

मैं आज ख़ुद को पाना चाहता हूँ !

( संकलित )

—- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !

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