घिर रहा तम आज दीपक रागिनी अपनी जगा लूँ !
क्षितिज कारा तोड़कर अब
गा उठी उन्मत आँधी
अब घटाओं में न रुकती
लास तनमय तड़ित बांधी
धूलि की इस वीण पर मैं तार हर तृण का मिला लूँ !
सब बुझे दीपक जला लूँ !!
—- प्रसिद्ध कवियत्री नहदेवी वर्मा
( संकलित )
—- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !