दिन पर दिन चले गए पथ के किनारे,
गीतों पर गीत अरे रहता पसारे !!
बीतती नहीं बेला सुर मैं उठाता ,
जोड़– जोड़ सपनों से उनको मैं गाता !!
दिन पर दिन जाते मैं बैठा एकाकी ,
जोह रहा बाट अभी मिलना तो बाकी !!
चाहो क्या रूकूँ नहीं रहूँ सदा गाता ,
करता जो प्रीत अरे व्यथा वही पाता !!
—– प्रसिद्ध कवि रवींद्रनाथ टैगोर
( संकलित )
——- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !