अजनबी देश है यह , जी यहाँ घबराता है
कोई आता है यहाँ , पर न कोई जाता है !
जागिये तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई
नींद में जैसे कोई लौट— लौट जाता है !
होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक़्त
द्वार मेरा कोई उस वक़्त खटखटाता है !
शोर उठता है कही दूर काफिलों का — सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है !
देखिये तो वही बहकी हुई हवाएं हैं
फिर वही रात है , फिर– फिर वही सन्नाटा है !
हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है !
( संकलित )
—— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !