“जिंदगी यूँ हुई बसर तन्हा .. “

जिंदगी  यूँ  हुई  बसर  तन्हा  ,

काफिला  साथ  और  सफ़र  तन्हा  !

 

अपने  साये  से  चौँक   जाते  हैं

उम्र  गुजरी  है  इस  क़दर   तन्हा   !

 

रात   भर  बोलते  हैं   सन्नाटे

रात  काटे  कोई   किधर   तन्हा   !

 

दिन  गुज़रता  नहीं  है  लोगोँ  में

रात  होती  नहीं   बसर    तन्हा   !

 

हमने  दरवाज़े  तक  तो   देखा  था

फिर  न  जाने  गए   किधर    तन्हा   !!

—–   प्रसिद्ध गीतकार  गुलज़ार

( संकलित  )

 

——  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

 

 

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