“तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा “

तमाम  उम्र  मैं  इक  अजनबी  के  घर  में  रहा  ,

सफर  न्  करते  हुए  भी  किसी  सफर  में  रहा  !

 

वो जिस्म  ही  था  जो  भटका  किया   जमाने  में

हृदय  तो  मेरा    हमेशा   तेरी  डगर  में   रहा    !

 

तू  ढूंढता  था  जिसे  जा  के  बृज  के  गोकुल  में  ,

वो  श्याम  तो  किसी  मीरा  की  चश्मे—  तर  में  रहा  !

 

वो  और  ही  थे  जिन्हें  थी  खबर   सितारों  की  ,

मेरा  तो  मन  उनके  प्यार  की  खबर  में  रहा   !

 

हज़ारों  रत्न  थे  उस  जौहरी  की   झोली   में

उसे  कुछ  भी  न  मिला  जो  अगर—  मगर  में  रहा  !

( संकलित  )

 

——-  राम  कुमार  दीक्षित,  पत्रकार  !

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