” मुक्तक “

1—   एक  दो  दिन  में  वो  इकरार  कहाँ  आयेगा

हर  सुबह  एक  ही  अखबार  कहाँ    आयेगा  !

आज  बंधा  है  जो  इन  बातों  में तो  बहल  जायेंगे

रोज  इन  बाहों  का  त्यौहार   कहाँ    आयेगा    !

 

2-कहीं पर जग लिए तुम बिन ,कहीं पर सो लिए तुम बिन

भरी महफ़िल में भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम  बिन

ये पिछले  चंद वर्षों की कमाई  साथ  है   अपने  ,

कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन

 

3–  तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता  हूँ

तुम्हारे  बिन  मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ

तुम्हें मैं भूल  जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन

तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है समझता  हूँ  !

 

4—- बताऊँ क्या मुझे ऐसे सहारों ने सताया  है

नदी तो कुछ नहीं बोली, किनारों ने सताया है

सदा ही शूल मेरी राह से खुद हट गए  लेकिन

मुझे तो हर घड़ी हर पल  बहारों  ने सताया  है  !

(  संकलित  )

 

——-  राम कुमार दीक्षित  , पत्रकार   !

 

 

 

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