दिल के लुट जाने का इज़हार जरूरी तो नहीं
ते तमाशा सर ए बाज़ार जरूरी तो नहीं !
मुझे था प्रेम तेरी रूह से और अब भी है ,
ज़िस्म से हो कोई सरोकार ये ज़रूरी तो नहीं !
मैं तुझे टूट के चाहूँ ये तो मेरी फितरत है ,
तू भी हो मेरा तलबगार ये ज़रूरी तो नहीं !
ऐ सितमगर कभी तो झाँक मेरी आँखों में ,
ज़ुबाँ से ही हो प्यार का इज़हार ज़रूरी तो नहीं !!
( संकलित )
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !