” बदली जो उनकी आँखें “

बदली  जो  उनकी  आँखें, इरादा  बदल  गया  ,

गुल  जैसे  चमचमाया  कि  बुलबुल  मसल  गया  !

 

यह  टहनी  से  हवा  की  छेड़छाड़  थी  ,  मगर

खिलकर  सुगंध  से  किसी  का  दिल  बहल  गया  !

 

ख़ामोश  फ़तह  पाने  को  , रोका  नहीं  रुका

मुश्किल  मुकाम, जिंदगी  का  जब  सहल  गया  !

 

मैंने  कला  की  पाटी  ली  है  शे ‘र  के  लिए

दुनिया  के  गोलंदाजो  को  देखा ,  दहल   गया   !

——  प्रसिद्ध कवि  सूर्यकांत त्रिपाठी  ‘ निराला  ‘

( संकलित  )

 

———-  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

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