खुद से बहुत दूर था , बेशक ज़माना पास था ,
जीवन में जब तुम थे नहीं ,पल भर नहीं उल्लास था
खुद से बहुत मैं दूर था, बेशक ज़माना पास था !
होठों पे मरुथल और दिल में एक मीठी झील थी
आँखों में आँसू से सजी , इक दर्द की कंदील थी
लेकिन मिलोगे तुम मुझे
मुझको अटल विश्वास था
खुद से बहुत मैं दूर था , बेशक ज़माना पास था
तुम मिले जैसे कुंवारी कामना को वर मिला
चाँद की आवारगी को पूनमी अंबर मिला
तन की तपन में जल गया
जो दर्द का इतिहास था
खुद से बहुत मैं दूर था , बेशक ज़माना पास था !
——- प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास
( संकलित )
——— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !