आज फिर आप की कमी सी है !
दफ़्न कर दो हमें कि साँस मिले ,
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है !
वक़्त रहता नहीं कहीं छुपकर ,
इस की आदत भी आदमी सी है !
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी ,
एक तस्लीम लाज़मी सी है !
—— प्रसिद्ध गीतकार गुलज़ार
( संकलित )
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !