” आईने में खरोंचें “

ख़ुद  को  अपना  क़याफ़ा  आये  नज़र  !

 

रेत  पर  मत  किसी  की  वफ़ा  को  लिखो  ,

आसमां  तक  कहीं  उड़  न  जाए   ख़बर   !

 

तुम  अभी  तक  वहीं  के  वहीँ  हो  खड़े  ,

झील तक  आ  गया  जलजले  का  असर   !

 

रात  कितनी  ही  लंबी  भले  क्यों  न  हो   ,

देखना  रात  के   बाद   होगी      सहर    !

 

शख्सियत  का   मिटाने  चले  हो    निशां  ,

ढूँढते  हो  मगर   आदमी   की    मुहर   !

 

फूल   तोड़े  गए    टहनियाँ  चुप   रहीं  ,

पेड़   काटा  गया   बस   इसी   बात  पर   !

( संकलित  )

 

——–  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार  !

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