ख़ुद को अपना क़याफ़ा आये नज़र !
रेत पर मत किसी की वफ़ा को लिखो ,
आसमां तक कहीं उड़ न जाए ख़बर !
तुम अभी तक वहीं के वहीँ हो खड़े ,
झील तक आ गया जलजले का असर !
रात कितनी ही लंबी भले क्यों न हो ,
देखना रात के बाद होगी सहर !
शख्सियत का मिटाने चले हो निशां ,
ढूँढते हो मगर आदमी की मुहर !
फूल तोड़े गए टहनियाँ चुप रहीं ,
पेड़ काटा गया बस इसी बात पर !
( संकलित )
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !