” वरदान माँगूँगा नहीं “

यह  हार  एक  विराम  है

जीवन  महासंग्राम  है

तिल– तिल  मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं  !

वरदान  माँगूँगा  नहीं  !!

 

स्मृति  सुखद  प्रहरों  के  लिए

अपने  खंडहरों  के  लिए

यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहूँगा नहीं  !

वरदान  माँगूँगा  नहीं  !!

 

लघुता  न  अब  मेरी  छुओ

तुम  हो  महान  बने  रहो

अपने  हृदय  की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा  नहीं  !

वरदान  माँगूँगा  नहीं  !!

 

चाहे  हृदय  को  ताप  दो

चाहे  मुझे  अभिशाप  दो

कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किन्तु भागूँगा नहीं  !

वरदान  माँगूँगा  नहीं  !!

——-  प्रसिद्ध कवि शिवमंगल सिंह  सुमन

( संकलित  )

 

——-  राम  कुमार  दीक्षित  ,    पत्रकार   !

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