” उषा की लाली “

उषा   की   लाली   में

अभी   से   गए   निखर

हिमगिरि   के   कनक   शिखर   !

 

आगे   बढ़ा   शिशु   रवि

बदली   छवि  ,  बदली   छवि

देखता   रह   गया  अपलक   कवि

डर  था  ,  प्रतिपल

अपरूप   यह   जादुई   आभा

जाए   ना  बिखर  ,  जाए  ना   बिखर    !

 

उषा   की   लाली   में

भले   हो  उठे   थे   निखर

हिमगिरि   के   कनक    शिखर   !

———  प्रसिद्ध कवि  नागार्जुन

( संकलित  )

 

——–  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

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