हो गया , तो हो गया !
एक तुम थे ,
जो सदा से अर्चना के गीत थे ,
एक हम थे ,
जो सदा से धार के विपरीत थे !
ग्राम्य– स्वर ,
कैसे कठिन आलाप नियमित साध पाता ,
द्वार पर संकल्प के
लखकर पराजय कंपकंपाता
क्षीण सा स्वर ,
खो गया तो खो गया !
मन तुम्हारा ,
हो गया तो हो गया !
लाख नाचे
मोर सा मन , लाख तन का सीप तरसे ,
कौन जाने ,
किस घड़ी तपती धरा पर मेघ बरसे,
अनसुने चाहे रहे ,
तन के सजग शहरी बुलावे ,
प्राण में उतरे मगर
जब सृष्टि के आदिम छलावे
बीज बादल
बो गया तो बो गया ,
मन तुम्हारा
हो गया तो, हो गया !
——— प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास
( सकलित )
——- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !