” मिलते नहीं देखा.. “

बिछड़ा  है  जो  इक  बार  , तो  मिलते  नहीं  देखा  ,

इस  ज़ख़्म  को  हमने  कभी  सिलते  नहीं   देखा  !

इक बार  जिसे  चाट  गई  धूप  की    ख्वाहिश  ,

फिर  शाख  पे  उस  फूल  को  खिलते  नहीं  देखा  !

काँटों  से  घिरे  फूल  को  चूम  आयेगी   लेकिन  ,

तितली  के  परों  को  कभी  छिलते   नहीं   देखा  !

जिसने  छलकाएं   हैं  किसी निश्छल  के  आँसू  ,

जीवन  में  उसके,  खुशियों   को   आते  नहीं  देखा   !

 

——–  राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे  , महारास्ट्र  !

 

 

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