” मैं जिसे ओढ़ता– बिछाता हूँ “

मैं  जिसे  ओढ़ता– बिछाता  हूँ  ,

वो  गज़ल  आपको  सुनाता हूँ  !

एक जंगल  है  तेरी  आँखों  में  ,

मैं  जहाँ  राह  भूल  जाता   हूँ   !

तू  किसी  रेल — सी  गुज़रती  है  ,

मैं  किसी  पुल– सा  थरथराता  हूँ   !

हर  तरफ  एतराज़  होता   है  ,

मैं  अगर  रोशनी  में  आता   हूँ   !

एक  बाजू  उखड  गया  जब   से  ,

और  ज्यादा  वज़न   उठाता  हूँ   !

मैं  तुझे  भूलने  की  कोशिश  में  ,

आज  कितने  करीब  पाता   हूँ   !

कौन  ये  फ़ासला   निभायेगा  ,

मैं  फरिश्ता  हूँ  सच  बताता  हूँ    !

——-  प्रसिद्ध कवि  दुष्यंत कुमार

( संकलित  )

 

——–  राम  कुमार  दीक्षित , पत्रकार  , पुणे, महारास्ट्र  !

 

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