” कहाँ पर बोलना है “

कहाँ पर बोलना है

और कहाँ पर बोल जाते हैं !

जहाँ खामोश रहना है

वहाँ मुँह खोल जाते हैं !

नई नस्लों के ये बच्चे

ज़माने भर की सुनते हैं !

मगर माँ बाप कुछ बोलें

तो बच्चे बोल जाते हैं !

बहुत ऊँची दुकानों में

कटाते ज़ेब सब अपनी !

मगर मज़दूर मांगेगा

तो सिक्के बोल जाते हैं !

हवाओं की तबाही को

सभी चुपचाप सहते हैं !

चराग़ों से हुई गलती

तो सारे बोल जाते हैं !

बनाते फिरते हैं रिश्ते

ज़माने भर से सब अक्सर !

ज़रूरत हो अगर घर में ,

तो रिश्ते भूल जाते हैं !

कहाँ पर बोलना है

और कहाँ पर बोल जाते हैं !

जहाँ खामोश रहना है

वहाँ मुँह खोल जाते हैं !!

( संकलित )

—— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !

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