विपदाओं से मुझे बचाओ , यह मेरी प्रार्थना नहीं
केवल इतना हो ( करुणामय )
कभी न विपदा में पाऊँ भय !
दुःख– ताप से व्यथित चित्त को न दो सांत्वना नहीं सही
पर इतना होवे ( करुणामय )
दुःख को मैं कर सकूँ सदा जय !
कोई कहीं सहायक न मिले
तो अपना बल पौरुष न हिले ,
हानि उठानी पड़े जगत में लाभ अगर वंचना रही
तो भी मन में ना मानूँ क्षय !!
मेरा त्राण करो अनुदिन तुम मेरी प्रार्थना नहीं
बस इतना होवे ( करुणामय )
तरने की हो शक्ति अनामय —
वहन कर सकूँ इसको निर्भय !
नत शिर होकर सुख के दिन में
तव मुख पहचानूँ छीन– छीन में !
दुःख– रात्रि में करे वंचना मेरी जिस दिन निखिल मही
उस दिन ऐसा हो करुणामय ,
तुम पर करूँ नहीं कुछ संशय !!
—— प्रसिद्ध कवि रवींद्रनाथ टैगोर
( संकलित )
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !