” जो शिलाएँ तोड़ते हैं “

जिंदगी को

वह गढ़ेंगे जो शिलाएँ तोड़ते  हैं

जो भगीरथ  नीर की  निर्भय  शिराएँ मोड़ते  हैं  !

 

यज्ञ को इस शक्ति– श्रम  के

श्रेष्ठतम मैं  मानता  हूँ

ज़िंदगी को

वे गढ़ेंगे जो प्रभंजन  हांकते  हैं   ,

शूरवीरों  के चरण से रक्त– रेखा  आंकते  हैं  !

 

यज्ञ को इस शक्ति– श्रम  के

श्रेष्ठतम  मैं  मानता  हूँ  !!

जिंदगी  को

वे  गढ़ेंगे  जो प्रलय  को  रोकते  हैं

रक्त  से रंजित  धरा  पर  शांति का पथ  खोजते  हैं  !

 

यज्ञ  को इस शक्ति–  श्रम  के

श्रेष्ठतम  मैं  मानता  हूँ  !!

मैं  नया  इंसान  हूँ  , इस यज्ञ में सहयोग  दूंगा  !

खूबसूरत जिंदगी की  नौजवानी  भोग  लूँगा  !!

——–  प्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल

( संकलित  )

 

———–   राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार  !

 

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