जसोदा हरि पालनै झुलावै
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोइ कछु गावै
मेरे लाल को आउ निंदरिया काहे न आनि सुवावै
तू काहे नहि बेगहिं आवै तोको कान्ह बुलावै
कबहुँ पलक हरि मून्द् लेत हैं कबहुँ अधर फरकावै
सोवत जानि मौन ह्वे के रहि करि करि सैन बतावै
इहि अंतर अकुलाई उठे हरि जसुमति मधुरै गावै
जो सुख सूर अमर मुनि दुर्लभ सो नंद भामिनि पावै !
इस पद में भक्त– कवि सूरदास ने भगवान् बालकृष्ण की सोने की अवस्था का सुंदर चित्रण किया है ! वह कहते हैं कि मैया यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झूला रही हैं ! कभी तो वह पालने को हल्का सा हिला देती हैं, कभी कन्हैया को प्यार करने लगती हैं और कभी दुलार करने लगती हैं ! कभी वह गुनगुनाने भी लगती हैं ! लेकिन कन्हैया को तब भी नींद नहीं आती है, इसलिए यशोदा नींद को उलाहना देती हैं कि अरी निंदिया तू आकर मेरे लाल को सुलाती क्यों नहीं ? तू शीघ्रता से क्यों नहीं आती ? देख तुझे कान्हा बुलाता है ! जब यशोदा निंदिया को उलाहना देती हैं, तब श्रीकृष्ण कभी तो पलकें मून्द् लेते हैं और कभी पलकों को फड़काते हैं !
जब कन्हैया ने नयन मून्दे तब यशोदा ने समझा कि अब तो कान्हा सो ही गया है ! तभी कुछ गोपियाँ वहाँ आई ! गोपियों को देखकर यशोदा उन्हें संकेत से शांत रहने को कहती हैं ! इसी अंतराल में श्रीकृष्ण पुनः कुनामुनाकर जाग गए ! तब यशोदा उन्हें सुलाने के लिए पुनः मधुर– मधुर लोरियां गाने लगीं ! अंत में सूरदास नंदबाबा की पत्नी यशोदा के भाग्य की सराहना करते हुए कहते हैं कि सचमुच ही यशोदा बड़भागिनी हैं , क्यों कि ऐसा सुख तो देवताओं एवं ऋषि– मुनियों को भी दुर्लभ है !
———— भक्त कवि सूरदास
( संकलित )
———– राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !