प्रिय स्वतंत्र– रव अमृत– मंत्र नव
भारत में भर दे !
काट अंध– उर के बंधन– स्तर
बहा जननि , ज्योतिरमय निर्झर ,
कलुष — भेद– तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !
नव गति, नव लय, ताल– छंद — मंद्ररव ,
नव नभ के नव विहग — वृंद को
नव पर , नव स्वर दे !
वर दे , वीणावादिनी वर दे !
——– प्रसिद्ध कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
( संकलित )
———– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !