प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला ,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला ,
मैं तुझको छक छलका करता ,मस्त मुझे पी तू होता
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला !
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला
कवि साकी बनकर आया है , भरकर कविता का प्याला
कभी न कण् भरखाली होगा, लाख पियें दो लाख पियें
पाठकगण हैं पीने वाले , पुस्तक मेरी मधुशाला !!
———- प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन
( संकलित )
———– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !