हाँ, हुज़ूर मैं चीख रहा हूँ, हाँ हुज़ूर मैं चिल्लाता हूँ
क्यों कि हमेशा मैं भूखी अंतड़ियों की पीड़ा गाता हूँ
मेरा कोई गीत नहीं है, किसी रूप सी के गालों पर
मैंने छंद लिखे हैं केवल नंगे पैरों के छालों पर
मैंने सदा सुनी है सिसकी मौन चांदनी की रातों में
छप्पर को मरते देखा है रिमझिम– रिमझिम बरसातों में
आहों की अभिव्यक्ति रहा हूँ कविता में नारे गाता हूँ
मैं सच्चे शब्दों का दर्पण, संसद को भी दिखलाता हूँ
क्यों कि हमेशा मैं भूखी अंतड़ियों की पीड़ा गाता हूँ
हाँ हुज़ूर मैं चीख रहा हूँ, हाँ हुज़ूर मैं चिल्लाता हूँ !!
——– प्रसिद्ध कवि डॉ हरि ओम पंवार
( संकलित )
————- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !