पलक पर यह स्नेह चुंबन
पोंछ दे सब अश्रु के कण्
नींद की मदिरा पिलाकर दे भुला जग क्रूर कारा !
हो मधुर सपना तुम्हारा !
दे दिखाई विश्व ऐसा,
है रचा विधि ने न जैसा,
दूर जिससे हो गया है बहिर अंतर्द्वंद् सारा !
हो मधुर सपना तुम्हारा !
कंठ में हो गान ऐसा ,
था सुना जग ने न जैसा,
और स्वर से स्वर मिलाकर गा रहा हो विश्व सारा !
हो मधुर सपना तुम्हारा !!
———– प्रसिद्ध कवि हरिवंशराय बच्चन
( संकलित )
——— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !