” सब अंधियारा मिट गया “

जब  मैं  था  तब  हरि  नहीं  , अब  हरि  है  मैं  नाँहि  !

सब  अंधियारा  मिट  गया  ,  दीपक  देखा    मांहि    !!

 

यह दोहा  प्रसिद्ध  सन्त  कबीर दास  द्वारा  रचित  है  !  इस दोहे में कबीर जी ने गुरु के ज्ञान पर प्रकाश डाला है  और   परमात्मा की प्राप्ति में अहंकार कितनी बड़ी  बाधा है  , इसका भी  उल्लेख किया  है  !  कबीर दास ने  अपना स्वयं का ही उदाहरण प्रस्तुत किया है  !  सन्त कहते हैं कि जब मैं अहंकार में डूबा हुआ था अर्थात  अपने मद में चूर रहता था  ! तब मुझे  परमात्मा का कोई अनुभव नहीं हुआ  लेकिन जब  मेरे गुरु ने  मेरे अन्तर में ज्ञान का दीपक जला दिया यानी  अपने ज्ञान से मेरे हृदय को प्रकाशित कर दिया  तो  मेरे हृदय का सारा अंधियारा मिट गया अर्थात लुप्त हो गया  !

 

कबीर जी आगे कहते हैं कि तब मैंने जाना कि  ओह  ,  मेरे प्रियतम परमात्मा तो पहले से मेरे हृदय में विराजमान थे  , मेरी  दृष्टि  अहंकार के कारण  परमात्मा को इतने नज़दीक होते हुए भी नहीं पहचान पा रही थी  ! ये तो सतगुरु ने कृपा करके मेरे अहंकार को दूर करके मुझे मेरे हृदय में  पहले से विराजमान परमात्मा की पहचान करा दी  ! सतगुरु के चरणों में कोटि कोटि  नमन करते हुए कबीर दास जी कहते हैं कि  ज्ञान के प्रकाश से अहंकार कहाँ लुप्त हो गया  , मुझे पता ही नहीं चला  ! अब तो परमात्मा के अलावा कुछ बचा ही  नहीं  !

अहंकार हमारी दैनिक जिंदगी में भी कितनी परेशानियाँ पैदा करता है  ! हम सब लोग जानते हैं  ! अहंकार के कारण कितने रिश्ते टूट जाते हैं  और कितने लोग अपनों से बिछड़ जाते  हैं  !  इसलिए  जब तक स्वयं के अस्तित्व पर कोई आपदा ना आवे    तब तक अहंकार से बचने की ज़रूरत है  ! अहंकार से शून्य व्यक्ति की तरफ कितने लोग खिंचे चले आते हैं  !   आध्यात्मिक जगत में तो परमात्मा को पाने के लिए अहंकार से  रहित  होना  ही  पड़ेगा  ,  तभी प्रियतम परमात्मा   की छवि का अनुभव  संभव  होगा  !

 

———-  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

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