अजनबी देश है यह , जी यहाँ घबराता है
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है
जागिये तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई ,
नींद में जैसे कोई लौट— लौट जाता है
होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक़्त
द्वार मेरा कोई उस वक़्त खटखटाता है
शोर उठता है कहीं दूर क़ाफ़िलों का — सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है
हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है !
———– प्रसिद्ध कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
( संकलित )
——— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !