आबो– दाना मिल तो जाए !
पारस पत्थर मैं न चाहूँ
इज्जत भर का मिल तो जाए !
बच्चे भी खुश रंग दिखें सब,
ऐसी शिक्षा मिल तो जाए !
खुश दिल चेहरे वालों सा कोई ,
इक दीवाना मिल तो जाए !
आपा– धापी कमतर हो और,
जीवन अच्छा मिल तो जाए !
मनमाना कब किसे मिला है,
थोड़ा मन का मिल तो जाए !
डर, वहशत की इस दुनिया में ,
दूर ठिकाना मिल तो जाए !
———- मोहन संप्रास
( संकलित )
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !