” बैलगाड़ी “

यह  समय  की  बैलगाड़ी

सो  रहा  है  मस्त  गाड़ीवान

पीकर   आज   ताड़ी

 

राह  के  अभ्यस्त

दोनो  बैल  आगे  बढ़  रहे   हैं

वृक्ष  पर  बैठे  परिंदे

गर्म  खबरें  पढ़  रहे   हैं

 

रात  भर  जलकर  बुझी  है

लालटेन  टंगी  पिछाड़ी  !

 

कौन  जाने  किस  दिशा  में

जा  रहे  हैं  इस  तरह  हम

जिधर  दिखता  हरा  चारा

उधर  मुड़ता  प्रगति  का  क्रम

 

बज  रही  हैं  घंटियाँ  भी

कंठ  में  बांधी  अगाडी  !

 

देखते  सुनते  समझते

कह  नहीं  पाते  मगर  कुछ

सह  रहे  हैं  एक दिग्भ्रम्

भूख  प्यास  थकान  सब  कुछ

 

इस  समय  का  गीत  गाता

एक  चरवाहा  अनाड़ी   !

———–  प्रसिद्ध कवि  भारतेंदु मिश्र

( संकलित  )

———– राम कुमार दीक्षित  , पत्रकार   !

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