” इंसान “

देखकर  दर्द   किसी   और   का

जो    आह   दिल   से

निकल   जाती   है…..

बस   इतनी   सी   बात   तो

आदमी

को

इंसान

बनाती   है…….

किसी शायर ने सच में कहा है कि कोई इंसान किसी दूसरे  इंसान के दुख को, उसके दर्द को देखकर यदि द्रवित अर्थात दुखी नहीं हो जाता है  तो फिर उसमें  इंसान होने के गुण न के बराबर हैं  !  परमात्मा ने सभी इंसानों को एक जैसा ही बनाया है किंतु प्रारब्ध वश कोई इंसान गरीब है तो कोई अमीर  !  लेकिन परमात्मा ने इंसान को इंसान जैसा ही बनाया है  ! परमात्मा हर इंसान के हृदय रूपी सिंहासन में  विराजमान भी है  !

समाज में तमाम ऐसे लोग हैं जो हर एक के दुख दर्द में शामिल होते हैं और दूसरों के दुखों को दूर करने की कोशिश भी करते हैं क्यों कि उन्हें लगता है कि मानव होने का यही मतलब है कि एक मानव दूसरे मानव के काम आये  ! उनका दुख दूर करे  ! हिंदी में दो शब्द आते हैं, एक है  सहानुभूति  और एक है  समानुभूति  ! सहानुभूति में मनुष्य  दूसरे की तकलीफ देखकर  संवेदनशील हो जाता है  और सहायता करता है  जबकि  समानुभूति में व्यक्ति ऐसा महसूस करने लगता है कि जैसे यह दुख उसके ऊपर ही आ गया है  और ऐसा व्यक्ति दूसरे के दुख  , दर्द को मिटाने की पुरी चेस्टा करता है  !

हमेँ भी यह ख्याल रखना चाहिए कि यदि कोई दुखी व्यक्ति हमारे संपर्क में आता है तो हम अपनी हैसियत के मुताबिक उस व्यक्ति की सहायता करने से  पीछे न  हटें  ! हम जो भी कर सकते हैं  , उसके लिए जरूर करें  !  कभी कभी तो आपकी थोड़ी सहायता और आपके दो मीठे बोल भी उसके लिए बड़ी राहत का काम कर सकते हैं   और किसी को जीवन जीने की प्रेरणा दे सकते हैं  !

 

————– राम कुमार दीक्षित   , पत्रकार   !

 

 

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