सडे हुए फलों की पेटियों की तरह
बाज़ार में एक भीड़ के बीच मरने की अपेक्षा
एकांत में किसी सूने वृक्ष के नीचे
गिरकर सूख जाना बेहतर है !
मैं नहीं चाहता कि मुझे
झाड़— पोंछकर दुकान पर सजाया जाए,
दिन— भर मोल— तोल के बाद
फिर पेटियों में रख दिया जाए ,
और एक खरीददार से
दूसरे खरीददार की प्रतीक्षा में
यह जीवन अर्थहीन हो जाए !!
————- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
( संकलित )
———— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !