” अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो….. “

अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है

अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो  !

अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी ,अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं  ,

अभी तो किरदार ही बुझे हैं  .

अभी सुलगते हैं रूह के गम, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के

अभी तो एहसास जी रहा है

यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है,

यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगुला बनकर

यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को लेकर

कहीं तो अंजाम– ओ– जुस्तजू के सिरे मिलेंगे

अभी न पर्दा गिराओ  , ठहरो  !!

————– फिल्मी गीतकार  गुलज़ार

( संकलित  )

————-  राम कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !