कभी पाबंदियों से छूट के भी दम घुटने लगता है
दरो– दीवार हो जिनमें वही जिंदा नहीं होता !
हमारा ये तज़ुर्बा है कि ख़ुश होना मोहब्बत में
कभी मुश्किल नहीं होता, कभी आसां नहीं होता
बज़ा है ज़ब्त भी लेकिन मोहब्बत में कभी रो ले
दबाने के लिए हर दर्द ऐ नादाँ , नहीं होता !
यक़ीं लाएं तो क्या लाएं , जो शक़ लायें तो क्या लाएं
कि बातों से तेरी सच झूठ का इमकां नहीं होता !
———— फ़िराक गोरखपुरी
( संकलित )
———— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !