” लहरों का गीत “

सुन  मधुर  मरुत  मुरली  की  ध्वनि

गृह— पुलिन  नान्ध  , सुख  से विव्हल,

हम  हुलस  नृत्य  करती  हिल–  हिल

खस  खस  पड़ता  उर  से   अंचल   !

 

चिर  जन्म— मरण  को  हँस  हँस  कर

हम  आलिंगन  करती  पल  पल  ,

फिर  फिर  असीम  से  उठ  उठ   कर

फिर  फिर  उसमें  हो  हो  ओझल   !

——- छायावादी  कवि  सुमित्रानंदन  पंत

( संकलित  )

————  राम कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार  !