” हम तो मस्त फ़क़ीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे “

हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे,

जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना  जाना  रे  !

 

रामघाट पर सुबह गुजारी

प्रेमघाट  पर  रात  कटी

बिना  छावनी  बिना, बिना छपरिया

अपनी हर  बरसात  कटी

देखे कितने महल  दुमहले, उनमें ठहरा तो समझा

कोई घर हो, भीतर से तो हर घर है  वीराना  रे  !

 

औरों  का  धन  सोना  चांदी

अपना  धन  तो  प्यार  रहा

दिल  से जो दिल का होता है

वो अपना व्यापार  रहा,

हानि लाभ की वो सोचें, जिनकी मंज़िल धन दौलत हो,

हमें सुबह की ओस सरीखा लगा नफा– नुकसान  रे  !

 

सबसे  पीछे  रहकर  भी  हम

सबसे  आगे  रहे  सदा

बड़े  बड़े  आघात  समय  के

बड़े मज़े  से  सहे  सदा  !

दुनिया की चालों से बिलकुल, उल्टी अपनी चाल रही

जो सबका सिरहाना है रे, वो अपना पैताना  रे  !

——— प्रसिद्ध कवि  गोपालदास ” नीरज ”

( संकलित  )

———— राम  कुमार  दीक्षित  , पत्रकार  !