हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंज़िल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी जल्दी चलता है !
दिन जल्दी जल्दी ढलता है !
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीडों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है !
दिन जल्दी जल्दी ढलता है !
मुझसे मिलने को कौन विकल ?
मैं होऊँ किसके हित चंचल ?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है
दिन जल्दी जल्दी ढलता है !
————– हरिवंश राय बच्चन
( संकलित )
———— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !