कंफ्यूशियस् के जीवन के अन्तिम दिन अनेक शिष्य उनके दर्शन करने पहुँचे ! उन्होंने अपने प्रिय शिष्य को अपने पास बुलाया तथा मुँह खोलकर दिखाते हुए कहा, गौर से देखो , मुँह में जीभ है या नहीं ? शिष्य ने उत्तर दिया , मुँह में जीभ है ! उन्होंने दूसरा प्रश्न किया , दाँत हैं कि नहीं ? शिष्य ने पोपला मुँह देखकर कहा, दाँत तो एक भी नहीं है ! कंन्फ्यूशियस् ने कहा, जीभ मेरे पैदा होने के समय थी और आज भी है ! दाँत मेरे बाद में आये और आज एक भी दाँत मेरे मुँह में नहीं है ! इसका कारण जानते हो क्या है ?
कुछ देर चुप रहने के बाद उन्होंने ख़ुद ही कहा , जीभ, कोमल और मीठी वाणी बोलने वाली है ! इसलिए यह जीवन के अन्तिम क्षणों तक भोजन– पानी से शरीर को पुष्ट करती रहती है और शरीर का अभिन्न अंग बनी रहती है ! दाँत कठोर पदार्थ के बने होते हैं ! इसलिए वे छत्तीस होते भी शरीर का अभिन्न अंग नहीं बन पाते हैं ! इससे यही शिक्षा मिलती है कि तुम सभी जीभ की तरह कोमल और सरस बनकर अन्तिम समय तक अपने देश और समाज की सेवा करते रहोगे !
इतना कहने के बाद कंफ्यूशियस् ने अपनी आँखें मूँद ली ! उनके शिष्यों ने गुरु के बताये उपदेशों का पालन करने संकल्प लिया ! प्रसंग से हमें भी यही सीख मिलती है कि सबके प्रति मृदुल व्यवहार रखना चाहिए और अपनी वाणी से कभी भी किसी से कटु व्यवहार नहीं करना चाहिए , तभी हमारा जीवन सार्थक होगा और मानवता पूर्ण होगा !
( साभार )
———– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !