” सेवा का मूल्य “

किपुणनगर में एक वैद्य जी रहा करते थे  ! उनका व्यवहार बेहद कुशल एवं विनम्र था  ! इसीलिए वे उस पूरे इलाके में बहुत आदर भी पाते थे  ! वे अपने चिकित्सा आश्रम में ही रोगियों का इलाज करते थे  ! एक बार नगर के एक सेठ अपने बच्चे को दिखाने के लिए उनके पास आये  ! बच्चे को देखने के बाद वैद्य जी ने उनको एक पुड़िया दवा दी   और पर्चे पर आगे चलने वाली दवा लिख दी  !

सेठ जी ने वैद्य जी से पूँछा  ,  क्या फीस देनी होगी  ? वैद्य जी ने कहा, आप मुझे पाँच हज़ार रुपये दे  दीजिये  ! यह बात  पास में बैठा, दूसरा मरीज सुन रहा था   जो बेहद गरीब था  ! उसने  सोचा कि इतनी फीस  , मैं कैसे दे पाऊँगा  ! यह सोचकर वह चुपचाप उठकर जाने लगा  ! वैद्य जी ने उससे पूँछा  , कि क्यों जा रहे हो, तो उसने अपनी व्यथा वैद्य जी को बता दिया  ! वैद्य जी ने उससे कहा, तुम यहीं बैठो  ! तुम्हारा इलाज मुफ़्त में होगा  ! जब तुम ठीक हो जाना तब आश्रम आकर दूसरों की सेवा कर देना  !

यह बात सुनकर सेठ मन ही मन क्रोधित हो गया  और वैद्य को बोला  , वैद्य जी  , आप किस तरह के वैद्य हैं  ? मेरा पैसा देखकर आपको लालच आ गया और मुझसे इतनी बड़ी रकम माँग बैठे जबकि इस आदमी का इलाज आप मुफ़्त में कर रहे हैं  ! मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी  ! वैद्य जी, मुस्कराते हुए बोले  , नहीं सेठ जी, ऐसी बात नहीं है  ! वास्तव में मेरे आश्रम को चलाने के लिए दो चीजों को आवश्यकता होती है , धन और सेवा  ! जिस व्यक्ति के पास जो चीज होती है , मैं वही मांगता हूँ  !

वैद्य जी ने कहा   आपके पास धन है तो मैं आपसे धन लूँगा और इस व्यक्ति के पास धन नहीं है  , इसलिए ठीक होकर यह मेरे आश्रम में अपनी सेवा प्रदान करेगा  ! सेठ जी  , वैद्य जी की बात सुनकर सन्न रह गए  ! उन्होंने वैद्य जी से कहा  , वैद्य जी, कृपया मुझे माफ कर दीजिये  ! मैं बिना आपका भावार्थ समझे हुए ही किसी गलत निष्कर्ष पर पहुँच गया  ! मैं यह भूल गया कि आप जैसा व्यक्ति कुछ कर रहा है तो निश्चित ही उसका कोई विशेष कारण होगा  !  यह कहते हुए सेठ जी ने वैद्य जी की हथेली पर पाँच हजार रुपये रख दिये और खुशी– खुशी अपने घर की ओर चल पड़े  !  सेवा है अनमोल  ! सेवा ही है साधना का सार  ! सेवा से ही परमात्मा का मिलन भी संभव है  ! सेवा ही  सिद्धि है  ! सेवा की सबसे बड़ी उपलब्धि तो यह है कि सेवा अहंकार को ही मिटा देती है  !  सेवा व्यक्ति को प्रेममय बना देता है  ! इसलिए सेवा मिले तो सौभाग्य मानकर अवश्य करनी चाहिए  !

 

————- राम कुमार दीक्षित, पत्रकार  !